बह के देखा
अपने साथ देखो
कहाँ कहाँ की मिटटी समेट कर लाया
एक दिन कूचे में नज़र बैठी
अपनी ही कहानी खरीद कर लाया
धूप में अपनी छाव में बैठा
ठंढ और गर्म की पहुच से बाहर
मैं कल ही अपने घर आया
हरा दिया मुझको मेरी ज़रूरतों ने
वाहियात मतलबों का सच पाया
---------आनंद झा -----2007
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