शुक्रवार, 5 मार्च 2010

mukammil

बह के देखा
अपने साथ देखो
कहाँ कहाँ की मिटटी समेट कर लाया

एक दिन कूचे में नज़र बैठी
अपनी ही कहानी खरीद कर लाया

धूप में अपनी छाव में बैठा
ठंढ और गर्म की पहुच से बाहर
मैं कल ही अपने घर आया

हरा दिया मुझको मेरी ज़रूरतों ने
वाहियात मतलबों का सच पाया

---------आनंद झा -----2007

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