शुक्रवार, 5 मार्च 2010

bakaaya

मुझपर गुज़र हुई पिछली रातें
धूल की तरह जमी पिछली रातें
रजिस्टर में दर्ज कर दी हैं
कोरे कागज़ पे अनकही पिछली रातें

जो गुज़ारा है या जो गुज़रा है
जो उतारा है या जो उतरा है
खोल कर रख दिया है छतरी सा
कल भीग कर जो भी बिखरा है

मुझे यकी है मैं समेट लूँगा ये
डाल संदूक में उठाकर सर पे
निकल जाऊंगा कहीं ये सभी
मुझपर गुज़र हुई हैं जो पिछली रातें

----------------------आनंद झा  २००४---------------

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