शुक्रवार, 5 मार्च 2010

girgit

कि जब मिले हैं सड़कों पर
मेरे चेहरे में बीते हुए कल के टुकड़े
मैं सोचता हूँ अजनबी हो जायेगा
आते हुए कल में मेरा चेहरा

हम अपने अन्दर कितने लोग रखते हैं
अपनी variable सी history के बुकमार्क
रास्ते बदलते हैं हम बदलते हैं
फिर उन्ही रास्तों पर चलते हैं

कुछ न कहना भी एक वादा है
कि जब मिलो खुद से तो बे गिला मिलना
जब भी आये कभी दिल खुद पे
तो वजह बेवजह बेपनाह मिलना

अपने आगे है , अपने पीछे है
बाँध रक्खा है तिलस्म दुनिया का
जिंदगी तुमको खुद पता भी नहीं
तुमने क्या क्या रंग बदले हैं

----------आनंद झा २००८-----------

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