शुक्रवार, 29 जून 2012

kinare

तुमसे प्यार करते करते
डर सा जाता हूँ
अलग होकर तुम्हारे साथ साथ
नहीं चल पाता
अनचीन्ही पगडंडियों में

फासलों के जन्मे हुए हैं
अगले सारे दिन
उन सभी दूरियों का विस्तार
नदी के दो सिरों सा

शांत
बस ताकता हुआ
जड़
अपने और तुम्हारे बीच
वक़्त के बहाव की कल्कलें सुनता

अपने डर को अपने गले में बांधे
उसके साथ जीता हुआ
अपने समय का इंतज़ार करता

मेरे ममेतर
दूसरे छोर पर तुम खड़े हो
और मैं तय नहीं कर पाता
एक नदी का विस्तार
जो निर्बाध बह रही है
हमारे बीच सदियों से  

सोमवार, 18 जून 2012

ped

हाथ अपने भींच कर
खुद का गट्ठर बना कर
सर झुका कर
वध्य
ठिठुरता बारिश की ठंड  में

कीचड सा मैं
सड़क के किनारे
घर जाने से डरता हूँ

धंस जाना चाहता हूँ
मिटटी में
और गड़ा रहना चाहता हूँ
पेड़ की तरह
अपनी जडें फैलाते - समेटते

भीगता सूखता गलता सड़ता
अपनी जगह पर स्थिर
इंतज़ार में
कि कोई आये
कुल्हाड़ी से मेरे सौ टुकड़े कर डाले
फिर सुखा डाले नमी की हर बूँद
धुआं बन सुलगा करे हर टुकड़ा मेरा फिर
ठंड से लड़ते हुए ......