गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

nightmare

ठंड में बौकती
पत्थरों पर अपने बूट पटकती
एक रात गुस्से में दारु पी कर
मेरे दरवाज़े पर बेहद शोर करती है

बारिश है
घर पर छत  नहीं है
बस दीवारें हैं
जो एक दूसरे  से टेक लगाये खड़ी हैं 

एक बच्चा है
बिन माँ बिन बाप
एक अकेली बस्ती है
और एक डर  है
जो दरवाज़ा भी है
और कैद भी

और बूंदों के साथ गिरती आहटें हैं