बुधवार, 27 जून 2018

der raat- subah ki taiyaari mein

तल्ख़ इमरोज़
और हर दिन वही
हारा मैदान
थकन और नींद के बीच
सुकू की मौज़ के थपेड़ों में
मेरे साथ
बहो जाना

ये रवानगी
ये दरिया बहते लम्हों का
ये शोर जो डूब रहा है सूरज के साथ
तुम कहाँ हो जाना के मैंने रोक रक्खी है
वो एक मौज जो आ कर रुकी है साहिल पर
एक उम्र की तल्खियत का नन्हा हासिल

इस शाम
साथ रहो
नींद के आ जाने तक