मंगलवार, 29 सितंबर 2015

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न इश्क़ किआ
न काम हुआ
न दिल्ली घूमे
न आया इंक्वालाब

न लाल किला बनाया
न गाड़े झंडे
न फ़कीर बनकर
सड़क पर भीख मांगी

बस बंद रहे
कुछ कमरों में
मकड़े की तरह
बुनते ही रहे
फंसते ही रहे 

-mohabbat 2

आँख भर आंच है
सीने भर दरिया
और मुट्ठी भर सितारे हैं

एक शराब की बोतल है
किताबें हैं
एक उम्र की कहानियां हैं

एक पूरी दुनिया है तुम्हारे हमारे बीच
और देखो तो शायद कुछ भी नहीं है

कुछ मुहब्बतों का मुक्कमल न होना
उनका हासिल है