शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

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सच उधेड़ने के सिवा और कुछ नहीं करता

तो फिर क्यों जानना है
सच
जब कुछ चीथड़े ही
बच गए हैं

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

परत दर परत हूँ मैं आखिर
आखिरी परत के नीचे कुछ भी नहीं

उतार दूं ये सारी परतें
तो कुछ नहीं हूँ मैं
कुछ भी नहीं

तो उड़ सकता हूँ हवा के साथ
न धूप न छाव न बूंदों के थपेड़े

ज़िंदगी तेरे और मेरे दरम्यां
कितने उम्र कितनी परतें हैं 

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

कुछ आखिरी रस्तों की जानिब से
सुन लेता हूँ
चहलक़दमियाँ

इनके बीच में तन्हाई के तहखानों से
हज़ार चुप्पियों का दर्द फूट पड़ता है

मैं बस  अक्षरों का भड़वा हूँ
देखता हूँ ,  डर कर भाग जाता हूँ 

benam khaidmatgaron ke naam

धुए के कारोबार में हम
पहर दो पहर
बेवजह
मशगूल रहे

आग कोई और जलाता चला गया
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शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

iltiza

मेरी चिंगारियों के सीने में
कोई खाली सा धुआं रख दो कभी
मुझे जलने मत दो
मुझे बुझने मत दो

मेरे अरमानों को बारूद  की गाली मत दो
उनको मौसम दो
पतझड़ दो, बहारें दो
उनको उगने दो खिलने दो और फिर झड़ जाने दो

उनको महफूज़ रखो
आन्धियाँ परे कर दो
मेरी चिंगारियों से बात करो फुर्सत में
उनमें कई आतिशें लरज़ाँ हैं