शनिवार, 28 जनवरी 2012

ChanduKhane-1

(चंडूखाने नशाखोरी की जगह होती थी जहाँ अलग अलग नालियां एक हुक्के में लगी होती थी , लोग हुक्का पीते और गपियाते थे )

  
कहते हो चढ़ती नहीं आजकल 
धुआं खेलते ही उड़ते हैं अलफ़ाज़ सबके एक साथ 
जैसे कागज़ के जहाज़ 
जिनका मालिकाना हक अब सिर्फ हवा का है 

चढ़ने और न चढ़ने का फर्क 
यहाँ से बाहर निकलने से डरने का फर्क 
कहने और न कहने का फर्क 
एक पहर के लिए खुदावालों की नज़रों से दूर 
दिल के करीब होने का 
अपने सीने से उसे खींच कर बहार निकलने का 
और उसकी आँखों में आँखें डाल कर 
बातें करने का फर्क 
दिख जाता है मियां 
शायद चढ़ती है तो बड़े प्यार से 
उतरती है तो उतार लेती है दो कदम ज़मीन की ओर


मुबारक हमको अपना चंडूखाना है 
यही दोज़ख यही ज़न्नत यही ज़माना है 
ज़िक्र चलता रहे मतलब - बेमतलब किसी शेह का 
किस गधे को इस महफ़िल से उठ के जाना है




मंगलवार, 24 जनवरी 2012

TATSUMI ( for tatsumi kobayishi, an inspiration )

कभी कहानियों में सुना था 
तत्सुमी 
कि जिंदगी की कालिख 
से बनाई जाती है जिंदगी की तस्वीर 
कोरे पर काला मलता है तो चढ़ता है 
ज़माने का grey
या ये सुना हो 
अपनी जान हथेली पर ले कर भागते हुए 
रुक जाओ वरना मारे जाओगे (या ऐसी कोई फिल्म देखी होगी)
और पता चला होगा 
कि भागते हुए ही जिन्दा रहते हैं 

या कयेवाखाने की नीली रौशनी में 
अपने बदन के सांचे में ढलता फौलाद नज़र आया होगा 
अपने अन्दर अपना खून पी कर पलता दानव 
बताओ Tatsumi 
pressure cooker से निकलती सीटी की हवा की तरह 
जिंदगी शोर भी करती है
हलकी भी होती है, थोड़ी गर्म भी 
और ऊपर उठती हुई दूर चली जाती है


Panne

खाली पन्ने खामोश नहीं होते हैं 
बेजुबान होते हैं 
अपने शोर को अपनी मुट्ठी में भींच कर 
कूड़ेदान में डाल देते हैं 
या छुप कर किसी मोटी जिल्द की तहों के भीतर 
बरसों गुज़ार देते हैं 
ख़ाली पन्ने खामोश नहीं होते हैं

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

tum sabhi se

मुझे तुम्हारे नालायक होने से कोई शिकायत नहीं है
मुझे तुम्हारी चमड़ी के गैंडे से ज्यादा सख्त और
तुम्हारे दिल के मशीनी होने से
भी कोई शिकायत नहीं है
मुझे इससे भी शिकायत नहीं है
की बरसों से तुम्हारे समझ के नाक में नकेल डालकर
कोई हांके जा रहा है तुम्हे
और तुम्हे नहीं दीखता कि जुते हुए हो तुम किसी के तांगे से
सरपट भागना है तुम्हारा लक्ष्य
और तुम्हे नहीं दीखता है वो हंटर जो तुमने खुद अपने सर पर टांग रखा है

मुझे तुम्हारे बुर्जुआ होने से कोई शिकायत नहीं है
बस डरता हूँ कभी एक दिन
मेरे दरवाज़े पर न आ जाओ तुम
तलवार और बंदूकें लिए
मैं तुम्हारी खिल्ली नहीं उड़ा पाउँगा ..
तुम्हें समझ / समझा न पाने की कीमत
अदा करूँगा
तुम्हारे हाथों मरूँगा

Sangya shoonya

महसूस करना डरना है
आदमी के पीछे उसकी कहानियों के साथ
सम्भोग करना
डरना है
डरना है
आइनों के सामने makeup करना
डरना है
किसी के सच से उसको डराना , घिनाना
डरना है
दरवाज़े पर ताला लगाना
एक घर बनाना
और खुद को उसके अन्दर नज़रबंद कर लेना
डरना है

क्या है प्यार करके गुनगुनाना
डर के इन दिनों में मुस्कुराना
क्या है ...सबसे बचाकर
जिंदगी चुराना

sangya shoonya-1

नींद में देखा तो क्या
वो सपना तो गया

खाली आँखों के सामने एक लम्बी रात पड़ी है
दर्द का शायर
रात का उल्लू  होता है
अपने सामने वक़्त का vaccum बना कर
ताकता रहता है
संज्ञा शून्य

शनिवार, 7 जनवरी 2012

कुछ दिनों तक लेखन अवरुद्ध रहेगा, आगे की रचनायें बेहतर रहेंगी

धन्यवाद्
आनंद