गुरुवार, 10 मई 2018

Varis

दश्त का
वारिस हूँ मैं
मेरा काम
याद रखना है
उस लम्हे से जब
ये तय हो चला था
कि  हर शहर उजाड़ होगा
बसेगा एक जैसे लोगों का
एक जैसा शहर
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कुछ वो जुड़े
जिन्हे ख़ुशी थी
किसी और के घर के जलने की
और कि
उन्होंने नहीं किया ये घिनौना काम
बस करवाया

फिर उनके घर की बारी आयी
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आग से मिन्नतें नहीं करते
न वजह देते हैं
आग जब फैलती है
तो लकीरें कहाँ देखती है
ये तुमने खींची ये उसने खींची
तो
वो
मत
जलाओ
जो
बुझा

सको
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हद के आगे दश्त है
वक़्त के आगे दश्त है
हर बियाबान का माज़ी एक बस्ती थी
हर बस्ती का चेहरा एक दश्त है
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मैं याद रखूँगा
ये वक़्त
जब किसी ने
खींची थी छत
और भर दिया था झुलसता आसमान
घर में मेरे
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मैं वारिस हूँ
मेरा काम याद रखना है

मंगलवार, 8 मई 2018

हम गुलशन में लाशों की फसल देख रहे हैं 
जो उग रही है 
हमारी आखों में 
मोतियाबिंद की तरह 

गुज़र जायेगा ये वक़्त 
नफरतों की दो सुईओं पर नाचता 
और हम खड़े होंगे 
ये सोचते हुए 

के हुआ क्या