बेतकल्लुफी का हुनर तुमसे सीखे
कोई पूछे किधर की हांकोगे इस बार
किस दरीचे किस कूचे जा बैठोगे
किसकी आखों से झांकोगे इस बार
किसका हाथ थाम ऐलाने जंग छेड़ोगे
किस का तख़्त ओ ताज उछालोगे इस बार
तुम्हारी आवाज़ तरकश ऐ इंकलाबी है
किस सितमगर का ज़ोर निकालोगे इस बार
न पैदा हुआ था मैं जब तुम खुदागंज चले
एक दौर ने आफ्सान' तुम पे वारे हैं
ज़ज्बा देते हैं लिखने का और लड़ने का
ये जो सारे सुखन' तुम्हारे हैं
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