तुम्हारी मर्ज़ी है बात चुन लो
एक शाम कि मुलाकात चुन लो
खबर वोही है जो टूटती है
और तहों पर बैठती है
जो धूल उडती है खिडकियों पर
वही दुहरायी सी रात चुन लो
सवाल है सब सवाल क्या हैं
क्यों है जो कुछ भी दरमियाँ है
पता है तुमको मुझे पता है
कोई अटपटा जवाब चुन लो
बेमतलब के मायने हैं
जहाँ ही सारा बस यूँ बना है
देखो घूमो दौड़ लगा कर
एक ठहरी सी कायानत चुन लो
मन है खुदा खुद उसी से पूछो
उसे पता है तुम्हे नहीं है
जो है जेहन में तुम्हारा हिस्सा
वो सब यहाँ पर है, यहीं है
करो तिजारत , नमाज़ चुन लो
तुम्हारी मर्ज़ी है बात चुन लो
---------आनंद झा २००९------------
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