मंगलवार, 9 मार्च 2010

labzishein

तुम्हारी मर्ज़ी है बात चुन लो
एक शाम कि मुलाकात चुन लो

खबर वोही है जो टूटती है
और तहों पर बैठती है
जो धूल उडती है खिडकियों पर
वही दुहरायी सी रात चुन लो

सवाल है सब सवाल क्या हैं
क्यों है जो कुछ भी दरमियाँ है
पता है तुमको मुझे पता है
कोई अटपटा जवाब चुन लो

बेमतलब के मायने हैं
जहाँ ही सारा बस यूँ बना है
देखो घूमो दौड़ लगा कर
एक ठहरी सी कायानत चुन लो

मन है खुदा खुद उसी से पूछो
उसे पता है तुम्हे नहीं है
जो है जेहन में तुम्हारा हिस्सा
वो सब यहाँ पर है, यहीं है
करो तिजारत , नमाज़ चुन लो
तुम्हारी मर्ज़ी है बात चुन लो

---------आनंद झा २००९------------

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