शनिवार, 26 अप्रैल 2014

तुम बदल-बदल गए हो
तुम नये नये हो
तुम चुप चाप सुन लेते हो मेरा पागलपन

तुम कहाँ दूर चले गये हो

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हम झगड़ते क्यों नहीं हैं
क्या हम समझदारी की  आड़ में  जाने देँगे
एक दूसरे के शोर में डूबा हुआ मौका
सुनने का
के कितना दर्दनाक  है
दुनिया में अकेला हो जाना  

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ये दिलफरेब रातें हैं
इनमें दूर
नहीं जाया करते

एक कम्बल के सिरहाने तक बांध लेते हैँ दुनिया
एक दूसरे की बाँहों में एक उमर काट देते हैं

ये तूफ़ान दो घड़ी भर है
हमको दूर जाना है 

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

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कहीं चनाब कोई
झूठ में भी
नहीं बहता

बस अनगिनत
सीढ़ियां
तहखाने हैं

उनमें रिसता
नालियों का पानी है

बस थोड़ी नींद है एक सच
और दूसरे के बीच

कुल मिलाकर
ये अपनी रोज़ की कहानी है 

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

Well you never showed me the chain
You never
Showed me how to break it
Yet we came here
you and I

What does that make us