बुधवार, 16 मार्च 2011

love 1

उनको चुप्पी से सुना करता था
उनकी क़दमों की आहट में
रास्तों के चेहरे बुना करता था

उनकी आवाज़ बरसी है आज घर पे मेरे
गीला गीला सा हूँ मुस्कुराता रहता हूँ 

सोमवार, 7 मार्च 2011

itivrit 3

मैं बहना चाहता हूँ 
मगर दरिया नहीं हूँ 
पत्थर हूँ 
एक बरसाती नदी की राह में बैठा 
इंतज़ार कर रहा हूँ सावन के बरसने का 

ऐसे कई मौसम 
जब गुज़र जायेंगे तब 
शायद पहुच जाऊंगा तुम्हारे शहर तक 
मुझे उठा कर तराशना मत 
मैंने नदी के साथ बहकर 
वक़्त के साथ एक शक्ल पाई है
ये चेहरा नहीं है इतिहास है मेरा, मेरा इतिवृत 
बस पड़े रहने देना नदी के किनारे
ताकि उन आखिरी दिनों में थोडा सुस्ता सकूं मैं

खैर ये काफी देर की बातें हैं 
अभी देखें कितने घुमड़ कर आते हैं बादल 
अगले महीने में 

बुधवार, 2 मार्च 2011

debates

अपनी तबियत के मारे 
मन के बच्चे 
अपनी ज़बान के खारिज होने के 
गूंगेपन से जूझते 

रोज़ उस पुल पे आ बैठते हैं
पुल का दावा है कि वो एक दिन जोड़ेगा 
जिंदगी के दो सिरे .....

उम्मीद की लाश पर तने
इस लोहे के मकबरे से पूछो 
कितनी पुश्तें गुमराह की हैं इसने 
झूठे वादों से 


मंगलवार, 1 मार्च 2011

mera shahar

मेरा शहर मुमकिन नहीं 
हर रोज़ बनाता हूँ अपने सच की रेत से 
मासूम रोज़ ही आ जाता है लहरों के थपेड़ों में 

अपने मुमकिन से शहर में मुहाफ़िज़ रख लो 
दुनिया में ऐसे भी सपनों की हकीकत नहीं होती