शनिवार, 30 नवंबर 2013

सखी
तेरे पास है सपना तेरा
तेरे पंख सुनहरे
तोलकर जिनको
उड़ेगी तू
पहाड़ी पार

मैं
तो पत्थर हूँ
जो ठहरा है
समुन्दर के साथ
ऐसे कई पलों में साक्षी बनकर


समाज ने जैसा बनाया नर मुझे
आज विकृत हूँ
ये कहते हैं
कई
तो कैसा बनू अब
कोई अपने आसपास
वैसा नर नहीं
कैसे निकालूं विकृति
जो मेरे खून के साथ
घुलती है
बदन में मेरे
जो मेरे दो टुकड़े करती है
फिर फ़ेंक कर अखाड़े में
लड़वाती है
मुझी को मुझ से
और फिर एक झटके में
जरासंध सी जुड़ जाती है
मेरी आकृति में

सखी ये तो निष्कर्ष है जो तुम्हारा
उसके आगे
वध्य हूँ
ये लो खंजर
और बताओ
कितना काटूं
कैसे काटूं
कैसे बनू मैं
मर्द

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

vella

रस्ते में गिरी अठन्नियां सम्हाल कर रखना
ये तुम्हारे इंतज़ार में बिछी थी 
इनसे दोस्ती करना 

अमावट की पन्नी से देखना 
पीली दुनिआ 
बड़ी खूबसूरत लगेगी 

नदी किनारे खच्चर के साथ बैठकर 
देखना 
कैसे घंटों नहाते हैं खच्चर और फिर धूप  में खाल सुखाते 

उनसे बच कर चलना 
जो हर लम्हे को पूरा जीते हैं 
कुछ खास नहीं होता वक़्त में 

बस नमी होती है 
जो उड़ जाती है 
धूप  लगते ही 

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

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कितने कसबे छूटे हमसे 
एक तेरा ही क़स्बा साथ रहा 
कितने चेहरे छूटे हमसे 
एक तेरा ही चेहरा साथ रहा 

कई सूखे ज़र्द दरख्तों पर 
तिनकों के मोहल्ले बनते रहे 
सारे सपने छूटे हमसे 
एक तेरा ही सपना साथ रहा 

उम्र का क्या है, क्यों रोकें 
जो ढलती हो सो ढल जाये 
जो कुछ भी था, वो छूट गया 
जो कुछ भी था वो साथ रहा