सोमवार, 22 मार्च 2010

paani -1

भरा समंदर
गोपीचंदर
बोल मेरी मछली कितना पानी
गल गल के आखों से बह गया
डूब के देखा इतना पानी

 उबाला सूरज
धोये किस्से
रात सी काली
दिन की कहानी

चले किधर अब
किधर मिलेगा
हँसता दरिया
गाता पानी

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