-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
सोमवार, 22 मार्च 2010
paani -1
भरा समंदर
गोपीचंदर
बोल मेरी मछली कितना पानी
गल गल के आखों से बह गया
डूब के देखा इतना पानी
उबाला सूरज
धोये किस्से
रात सी काली
दिन की कहानी
चले किधर अब
किधर मिलेगा
हँसता दरिया
गाता पानी
1 टिप्पणी:
Shalini Sharma
22 अप्रैल 2010 को 4:34 am बजे
Bahutkhoob!jo bhi kaha bahutkhoob kaha!
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