मंगलवार, 9 मार्च 2010

aawara muhabbaton ke naam

रुक कर फिसलती बात पर
एक शाम का ईमान है
हथेली पे रक्खी लकीरों पे
तेरी उँगलियों के निशान है

क्या वफ़ा क्या उसके उसूल हैं
न सुना न पढ़ा मैंने कभी
पढता हूँ तेरी याद मैं
तू ही मेरी अजान है

बढ़ता हूँ हिस्सा जो तोड़कर
उससे जुड़ा सा रह गया
सीने से निकला था उस घडी
उड़ता धुआं सा रह गया
----आनंद झा----२००९---

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें