शनिवार, 11 जनवरी 2020

insomnia

कई रातों के बेसिरपैर सपने
दस्तावेज़ों की तरह गुथे हुए
रखे हैं ऐसे
जैसे मालगाड़ी का एक खाली डब्बा
एक अध् गुमी रेल की पटरी पर
खड़ा रहता है

ऐसा इंतज़ार किसका किया है

लोगों का, हालातों का, चीज़ों का, मौसमों का

कौन छांटेगा ये बैरंग सपने

रवाना करेगा इन्हें
नींद की डाक पर 

arzi

मैं तुम्हारी मोहब्बतों के काबिल हूँ
मुझसे इश्क़ करो
बड़ा इंतज़ार किया है मैंने
तुम्हारे तैयार होने का
मुझे बना लो अपनी सारी दुनिआ

बस मेरी बात सुनो
बस मेरा ज़िक्र करो

मुझे दे दो अपने ये सारे मौसम

ये गुनाहे अज़ीम भी कर लो
ये गुनाहे अज़ीम भी कर लो 

subah

इस तरह बना लें
हम अपनी सुबह
टेलीफोन के तारों में पिरो कर

चलें काफी दूर
और देखते चलें
क़दमों के तले
पार्कों में बिखरे हुए
यतीम लम्हों को
घर ले चलें 

rishta

रिश्ता दरख्वास्त है
हक़ नहीं है

एक पेड़ की छाँव
क्या पेड़ का इरादा है
या उसके वज़ूद का हिस्सा

क्या पेड़ इंकार कर सकता है
छाँव देने से

क्या हम-तुम
अलग हैं
पेड़ों से

क्या मुहब्बत आदमी की फितरत है
या उसका इरादा