बुधवार, 31 मार्च 2010

mushkil

मान लेते हैं अ के सानी ४
मान लेते हैं बी के सानी ६
जोड़ दो अलफ़ाज़ तो क्या बनता है
जनाब १० का आकडा बनता है
अलफ़ाज़ जोड़ते हैं आकडे बन जाते हैं

आजकल बहुत से #### 
कलम की taxi चलाते हैं

मान लो मानी में क्या जाता है
गोया न भी मानो तो दुनिया मानेगी
आकड़ों की शैदाई है दुनिया
दिल की सियाही बेकार खाली जाएगी

सोच रहा हूँ के बेच डालूँ ये कलम
जला कर बहा दूं दरिया में ये सारे सुखन
घोट डालूँ गला इस दिल की समझदारी का
हो जाऊं शामिल फिर गधों की बस्ती में

बस एक और सामना इस भीड़ के साथ
अबकी हारा जो ये जंग तो मर जाऊंगा .

epitaph

कटी कलाई
बहा समुन्दर
किधर का किस्सा
किधर चलेगा

लाद चला था
सारी दुनिया
रिश्ते नाते
और सन्नाटे
जहाँ चलाये उसका मौला
उधर चला था
उधर चलेगा

सब कुछ देखा
फिर कुछ जाना
की मुहब्बत किया बहाना
निचोड़ी रातों से नींद सारी
गुज़र गया एक और ज़माना
 न पूछो उससे खुदा के बन्दे
हुआ है बरसों से वो दीवाना
आनी जानी दुनिया सारी
लगा रहेगा आना जाना
 सफ़र तो बस दिल का  तय था
उधर से ही रास्ता खुलेगा

अगले मोड़ कब्र है उसकी
उधर ठिकाना वही मिलेगा
----------२०१०--आनंद झा ------

सोमवार, 22 मार्च 2010

faiz ahmed faiz ke naam

बेतकल्लुफी का हुनर तुमसे सीखे
कोई पूछे किधर की हांकोगे इस बार
किस दरीचे किस कूचे जा बैठोगे
किसकी आखों से झांकोगे इस बार

किसका हाथ थाम ऐलाने जंग छेड़ोगे
किस का तख़्त ओ ताज उछालोगे इस बार
तुम्हारी आवाज़ तरकश ऐ इंकलाबी है
किस सितमगर का ज़ोर निकालोगे इस बार

न पैदा हुआ था मैं जब तुम खुदागंज चले
एक दौर ने आफ्सान' तुम पे वारे हैं
ज़ज्बा देते हैं लिखने का और लड़ने का
ये जो सारे सुखन' तुम्हारे हैं

paani -1

भरा समंदर
गोपीचंदर
बोल मेरी मछली कितना पानी
गल गल के आखों से बह गया
डूब के देखा इतना पानी

 उबाला सूरज
धोये किस्से
रात सी काली
दिन की कहानी

चले किधर अब
किधर मिलेगा
हँसता दरिया
गाता पानी

मंगलवार, 9 मार्च 2010

आखों में लग के छूट गया
दाल के तडके की तरह

जब कह दी तूने फिर से
जाने वाली बात
---आनंद झा---२००४--

aawara muhabbaton ke naam-2

न तमन्ना-ओ-सुर सजाओ
न कोई जवाब दो
मुझे रात भर सुलाओ
मुझे एक ख्वाब दो
मुझे बोल दो के माजी
मेरा इंतज़ार है
मुझे एक रात रोको
मुझे माहताब दो

न सुकून रहा
न ज़मीन रही
कि ख्याल है या खुमार है

मुझे हर गली सजाओ मुझे हर बहाव दो
--------------आनंद झा---२००३---

aawara muhabbaton ke naam

रुक कर फिसलती बात पर
एक शाम का ईमान है
हथेली पे रक्खी लकीरों पे
तेरी उँगलियों के निशान है

क्या वफ़ा क्या उसके उसूल हैं
न सुना न पढ़ा मैंने कभी
पढता हूँ तेरी याद मैं
तू ही मेरी अजान है

बढ़ता हूँ हिस्सा जो तोड़कर
उससे जुड़ा सा रह गया
सीने से निकला था उस घडी
उड़ता धुआं सा रह गया
----आनंद झा----२००९---

bol jamoore

खोज उसे
जो चुप बैठा है बीच तुम्हारे
जो उगता उगता गल जाता है साँझ सकारे
चल ढूंढ अठन्नी आँख की कन्नी
कूल किनारे ढूंढ
बूझ पहाडा अट्ठारह का
खोज बहारें ढूंढ

खोज उसे
कर गीली गीली पाशा
खोज मदीना ढूंढ
भरी दुपहरी सी दुनिया में
एक दिन जीना ढूंढ

आँख मिली देखा क्या तुमने
ख्वाब रहा न ख्वाब
दुनिया बनी बना ये झंझट
क्या सच क्या है ख्वाब

चलती रहे ये गाड़ी तेरी
ख्वाब कमीना ढूंढ

खोज उसे

---------आनंद झा---२००४-----

ahmakana sa kuch

मुझे क्या
मैं तोह रहगुज़र का हूँ
मुझे क्या
मैं तो बे उम्र सा हूँ
मुझे क्या
मैं तो ठहर जाऊं भी
ओढ़ कर एक कफ़न मर जाऊं भी

मुझे क्या, मैं तो सोता हूँ सूरज के साथ
होती है रात तो रोता हूँ सूरज के साथ

मुझे क्या मैं तो रहगुज़र का हूँ
मुझे क्या मैं तो बे उम्र सा हूँ

---------आनंद झा----२००५-----
तेरी झोली में डाल दी दुनिया अपनी
तेरे  आँचल में फैल गया रंगों कि तरह

आज खुद का श्राद्ध कर दिया मैंने
अब चाहे जहाँ भी ले जाओ

labzishein

तुम्हारी मर्ज़ी है बात चुन लो
एक शाम कि मुलाकात चुन लो

खबर वोही है जो टूटती है
और तहों पर बैठती है
जो धूल उडती है खिडकियों पर
वही दुहरायी सी रात चुन लो

सवाल है सब सवाल क्या हैं
क्यों है जो कुछ भी दरमियाँ है
पता है तुमको मुझे पता है
कोई अटपटा जवाब चुन लो

बेमतलब के मायने हैं
जहाँ ही सारा बस यूँ बना है
देखो घूमो दौड़ लगा कर
एक ठहरी सी कायानत चुन लो

मन है खुदा खुद उसी से पूछो
उसे पता है तुम्हे नहीं है
जो है जेहन में तुम्हारा हिस्सा
वो सब यहाँ पर है, यहीं है
करो तिजारत , नमाज़ चुन लो
तुम्हारी मर्ज़ी है बात चुन लो

---------आनंद झा २००९------------

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

girgit

कि जब मिले हैं सड़कों पर
मेरे चेहरे में बीते हुए कल के टुकड़े
मैं सोचता हूँ अजनबी हो जायेगा
आते हुए कल में मेरा चेहरा

हम अपने अन्दर कितने लोग रखते हैं
अपनी variable सी history के बुकमार्क
रास्ते बदलते हैं हम बदलते हैं
फिर उन्ही रास्तों पर चलते हैं

कुछ न कहना भी एक वादा है
कि जब मिलो खुद से तो बे गिला मिलना
जब भी आये कभी दिल खुद पे
तो वजह बेवजह बेपनाह मिलना

अपने आगे है , अपने पीछे है
बाँध रक्खा है तिलस्म दुनिया का
जिंदगी तुमको खुद पता भी नहीं
तुमने क्या क्या रंग बदले हैं

----------आनंद झा २००८-----------

yaadein

उछाला है दूर तक
यादों का गठ्हर
पत्थर ही हो गया था
लुढ़क जायेगा कहीं

अब कोई क्या करे
लेकर कहाँ फिरे
यादों के साथ क्या कहीं
जीते हैं जिंदगी

अपनी कहानी तापकर
काटी हैं सर्दियाँ
रोटी के साथ खायी हैं
यादों की चाशनी

-------------आनंद झा २००९---------

bakaaya

मुझपर गुज़र हुई पिछली रातें
धूल की तरह जमी पिछली रातें
रजिस्टर में दर्ज कर दी हैं
कोरे कागज़ पे अनकही पिछली रातें

जो गुज़ारा है या जो गुज़रा है
जो उतारा है या जो उतरा है
खोल कर रख दिया है छतरी सा
कल भीग कर जो भी बिखरा है

मुझे यकी है मैं समेट लूँगा ये
डाल संदूक में उठाकर सर पे
निकल जाऊंगा कहीं ये सभी
मुझपर गुज़र हुई हैं जो पिछली रातें

----------------------आनंद झा  २००४---------------

muntzir

आँचल सा फ़ैल जाता है घर
इंतज़ार में
आयेंगे वो के उनका करम है
बहार में

हर शह में एक लम्हा है
सिलवट में रात है
आता नहीं करार
दिल ऐ बेकरार में

जायेंगे वो सनद है
कुछ ही दिनों के बाद
आता है जैसे दम
और दिन उड़ते गुबार में

चौखट को हमारे भी
हो जायेगा यकीं
दिन इसने भी गिन रखे हैं
इसी ऐतबार में


mukammil

बह के देखा
अपने साथ देखो
कहाँ कहाँ की मिटटी समेट कर लाया

एक दिन कूचे में नज़र बैठी
अपनी ही कहानी खरीद कर लाया

धूप में अपनी छाव में बैठा
ठंढ और गर्म की पहुच से बाहर
मैं कल ही अपने घर आया

हरा दिया मुझको मेरी ज़रूरतों ने
वाहियात मतलबों का सच पाया

---------आनंद झा -----2007