सोमवार, 17 सितंबर 2012

निहाँ है  तेरे सागर में
मेरे  सुकून के पल-छिन
एक पैमाने जितनी जिंदगानी में
पूछते हो क्या पाया मैंने

साकी हूँ किसकी महफ़िल का
किसके लबों पर कब चस्प हुआ
एक अर्से की ख़ुमारी का सुदोज़ियाँ
बचाया गवाया क्या मैंने

एक रात कटी हैं आखों में
एक नींद है अपने रस्ते पर
बादाख्वारी में कुछ तो सच निकला
वगरना बताया क्या मैंने