मंगलवार, 19 जुलाई 2022

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कुछ नहीं बदलेगा 
वक़्त नहीं बदलेगा 
लोग बदलेंगे 
पर क्या बदलेंगे ?

दूरियों का डर होगा 
थकान की हद पे 
पैसो का बिस्तर होगा 
लोग तन्हा होंगे 
परेशां होंगे 

तुम बदलोगे 
मैं बदलूंगा 
हम अपने रास्तों में 
सफर ढूंढेंगे 
हम लोगों में 
अपने टूटे हुए 
घर ढूंढेंगे 

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खाली सीना 

तेरी याद 

तेरा होना जैसे ओस सा 

लम्हे में शुरू 

लम्हे में ख़त्म 

फिर उन यादों की तहें 

जिन्हें खोलना 

इस्तरी करना और रख देना 

अपने ज़हन के किसी हिस्से में 

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ये बेमतलब है 

या ये तरीका है हमारे होने का