बुधवार, 23 जनवरी 2013

mera gaon

नदी के पेट में
सोया पड़ा है
एक सूखा गाँव

पपड़ी की तरह
एक छोर पर चिपका सतह से
एक नर्तक की तरह
एक ठहराव को एक फ्रेम में कैद करता
एक पैर पर उड़ता
मेरा गाँव

मैं बरसों से नहीं गया हूँ वहां
बस नदी के कानों से झांकता हूँ
और फूँक कर देता हूँ आवाजें
जो वापस
एक बैरंग लिफाफे की तरह
मेरे पास आती हैं

अब कोई रहता नहीं हैं
गाँव में मेरे 

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

सुरंग है
और एक ही तरफ जाती है रौशनी की तरकीब
बस गिरते जाना है
गहरे - गहरे
निर्वात में
जहाँ न सपने हों
न उन पर बनी इमारतें
न दीवारें
न मायने

बस रौशनी है
सुरंग के उस तरफ