शुक्रवार, 5 मार्च 2010

muntzir

आँचल सा फ़ैल जाता है घर
इंतज़ार में
आयेंगे वो के उनका करम है
बहार में

हर शह में एक लम्हा है
सिलवट में रात है
आता नहीं करार
दिल ऐ बेकरार में

जायेंगे वो सनद है
कुछ ही दिनों के बाद
आता है जैसे दम
और दिन उड़ते गुबार में

चौखट को हमारे भी
हो जायेगा यकीं
दिन इसने भी गिन रखे हैं
इसी ऐतबार में


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