शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

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उसका चेहरा
टूटे हुए पत्थर की तरह
ऊन के लोंदे से निकलता हुआ
घिसी दाढ़ी पर ठंढी धूल के पैबंद

उसके हाथ पेड़ के तने की तरह रूखे
काले कोट से निकलते हैं आग की ओऱ

मैं उसका चेहरा चाहता हूँ
मैं उसके हाथों का चमड़ा चाहता हूँ
अपने हाथों पर

 इस जाड़े में ओढ़ कर उसकी गरीबी
ठंढ से लड़ना चाहता हूँ