शुक्रवार, 5 मार्च 2010

yaadein

उछाला है दूर तक
यादों का गठ्हर
पत्थर ही हो गया था
लुढ़क जायेगा कहीं

अब कोई क्या करे
लेकर कहाँ फिरे
यादों के साथ क्या कहीं
जीते हैं जिंदगी

अपनी कहानी तापकर
काटी हैं सर्दियाँ
रोटी के साथ खायी हैं
यादों की चाशनी

-------------आनंद झा २००९---------

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