उछाला है दूर तक
यादों का गठ्हर
पत्थर ही हो गया था
लुढ़क जायेगा कहीं
अब कोई क्या करे
लेकर कहाँ फिरे
यादों के साथ क्या कहीं
जीते हैं जिंदगी
अपनी कहानी तापकर
काटी हैं सर्दियाँ
रोटी के साथ खायी हैं
यादों की चाशनी
-------------आनंद झा २००९---------
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