शनिवार, 31 मार्च 2012

engrezzi mein homecoming

roads will grow thinner
until they disappear
into a small courtyard
and then
we will meet

we started from those little veins
stretching out of our little doors
and flew into wide turbulent
unending roads

turning back each time
making a resolve to return
until we lost sight of those little doors

home was a road, a cybercafe, a dorm
home was a cubical, the back of a car
home was the railway station,
home was then just a word with nothing tied to it...
home had flown away...

i'm not sure of this
but i want to turn backwards
until the roads thin out into staircases....
and i can then
start placing a brick from the cafe
gravel from the street, sink from the airport lounge
and build a collage

and tie myself to it
keeping my head on the torn out boots.
sleeping away

गुरुवार, 29 मार्च 2012

bamangi ke liye

क्या गायेगा
क्या खायेगा
भेजा?
कलेजा?
गा नशे में
सच भी सुरीला लगता है
हो मस्त फिसल जा
जिन्दगी बर्फ है
बेटे बमांगी
फिसलता दूर निकल जा
देस ऐसे
जहाँ ठण्ड का मौसम जा चुका हो
और गल चुके हों बर्फ के भद्दी नाक वाले
सारे पुतले
गा
बसंत आएगा
तू ही लायेगा
बेटे बमांगी 

hemlata ma'am ke liye-2

सब आवाजें
जैसे बांध तोड़े
बह चली थी

आज तेरे घाट पर आ कर रुकी हैं

ओ मांझी
कब पार चलें वैतरणी के

सब कूल किनारे
छोटे होते जाते
किनारे दूर खड़े
सारे सहारे

कुछ गा मांझी
बहती नाव
बहती सुर की धार


अंतिम कहाँ
बस रचा था एक कल्प
एक पड़ाव के लिए
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रविवार, 25 मार्च 2012

nirmal verma ki kahaniyon sa

निर्मल वर्मा से मेरा लगाव नहीं जाता. काफी आलोचकों के उन्हें ख़ारिज किया है. एक आउट ऑफ़ कांटेक्स्ट अंग्रेजी नोवेलिस्ट को हिंदी कहानी के characters dilute करने वाला बताया है. मैं एक साधारण पाठक हूँ और मेरा मत इन तरह की arguments में शुमार नहीं हो सकता . मेरा लगाव काफी personal है . मैं उनको पढ़ते पढ़ते शायद उनकी कहानियों का एक किरदार सा बन गया हूँ.  अकेला बेलौस रोमांटिक ..जो दुनिया को बस दूर से उठते ढलते देख सकता है , हाशिये से प्यार कर सकता है , एक कम रफ़्तार कहानी का किरदार जिसका अन्य किरदारों से एक situational सहमति का रिश्ता होता है.

मेरे लिए इस तरह की जिंदगी का सामना सिर्फ उनकी कहानियों में हुआ था, और आज खुद एक ऐसी ही कहानी की गिरफ्त में आ जाना आधी अजनबियत जैसा है , आपने देखा तो है पर कहाँ देखा मालूम नहीं. 
इन कहानियों को आधा पढ़ कर किताब सिरहाने रख सकते थे, पर जिंदगी का क्या करें, सिरहाने पर भी रखो तो लगता है कोई साथ सो रहा है.
काफी अरसे से देखना भी जाता रहा है ...तो डिटेल की परख नहीं मिल पाती. अमूमन वोही बातें दोहराता रहता हूँ. उनकी किताबों में भी कई बार वोही किरदार अलग अलग कहानियों में मिले हैं ; लाल टीन की छत; अंतिम अरण्य .....मगर दुहराव में भी एक चाव है , एक minute सा फर्क , वोही देखा है मगर कहाँ देखा है  वाला एहसास .

अगर आप कुछ ऐसे देख/जी रहे हैं तो ज़रूर बताएं ....
शुभरात्रि

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

Hemlata ma'am ke liye

कितनी उम्र काफी होती है

कब कहते हैं
बस बाकी नेक्स्ट क्लास में करेंगे

गतांक से आगे की यात्रा आपकी
अकेली है....
न डर है गलते शरीर का
न चिंता, न दुनिया की उगाई हुई समझदारी की बेल , दम घोंटती हुई

बस एक सड़क है
जिसके किनारे की बेंच पर पन्ने हैं कुछ
और एक कलम है
--
मुझे नहीं पता हम कब मिलेंगे फिर
मैं बस स्टैंड से लौट चुका हूँ वापस , अपने कमरे में 
आपकी कलम के साथ
आपके पन्नों की कुछ कतरनों के साथ
--
मेरा प्यार आपको
आपकी यात्रा के लिए,नेक्स्ट क्लासों से दूर.......
और आभार
कि आपने मुझे कहना सिखाया, सुनना सिखाया
लिखना सिखाया
आदमी बनाया 

शनिवार, 17 मार्च 2012

मुझे चुप्पी का शाप था 
फिर बोलना भूल गया 
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