सोमवार, 15 जून 2020

neend

देर रात तक
मेरा दिमाग
एक रेलवे प्लेटफार्म की तरह बिछा होता है
कुछ ख्याल चलते रहते हैं पैसिंजरों की तरह टहलते रहते हैं
पूरी रात
कुछ यादें ट्रेनों की तरह आती हैं
नींद नहीं आती

ये उम्र
इतनी लम्बी थकान
के कोई सो भी जाये बरसों
तो ख़त्म न हो

सोचता हूँ के कर लू वास्ता
फूल पत्तियों से
लोगों से बाज़ आऊं

क्या वक़्त है
जो टंगा रहता है
दम घोंटता है
गुज़रता भी नहीं
बदलता भी नहीं