शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

conversations

सुन सको अगर 
दबी चीखों में 
एक बीते हुए दिन की भैरवी 

सुन सको अगर
हर एक जुम्बिश  वक़्त की
उन सभी चेहरों पर 

बिना बंद किये कान 
अगर बर्दाश्त कर सको
तन्हाई का सैलाब सा शोर 

तो मिलेंगे शाम को
एक प्याली चाय पर

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

बरसते हुए देखता रहा तुमको 
आसमानी नदी 
कोई समंदर नहीं खड़ा तुम्हारे इंतज़ार में 

बस एक तपती सी सड़क है तनहा 
मुंह बाये आसमान को तकती 

जिंदगी चाहे कितनी छोटी हो तुम्हारी
मानी उसके समंदर से बड़े लगते हैं 

रविवार, 7 अगस्त 2011

portrait

घुल रहा है 
तुम्हारे सपनों सा 
कैनवास पे रंग 

धूप की बारिश 
इन्द्रधनुष 
साइकिल चलते बच्चे 
मूंगफली  वाले की आवाज़ 
"बादाम भाजा, फोड़-फोड़ के खाजा "
सफ़ेद पे पीला , चम्पई 

एक लड़की की आँखें 
ताकती बेचैन, 
रेलिंग के पीछे सर झुकाए झूमते eucaliptus के पेड़ 
जाड़ा ऊनी pant गहरे हरे रंग की jacket
दुर्गा पूजा की भीड़ 
मेला दुकानें नए कपडे 
आसमानी है न , एक लम्बा stroke

किताबें, और किताबें 
उनकी बदबू, उनके पीछे झांकती भूखी आखें 
रिजल्ट , और रिजल्ट और किताबें, 
एक साल से दुसरे साल का बदला
भूख और भूख 
बंद कमरे के बाहर  थोडा सा आसमान 
ग्रे

फिर बहाव 
मुट्ठी, आवाजें 
अलग अलग दिशाओं में खींचते हाथ
खुद से विवाद, और विवाद 
फिर खाली सा दिन
थोडा और ग्रे 

गिरती इमारतें
गायब होते लोग
सख्त स्याह प्लास्टिक सा होता अंतस
दोपहर, धूप 
लाल, 

कैनवास पे सूखते strokes 

सोमवार, 1 अगस्त 2011

धूप में सूखते हुए सन्नाटे 
सुफैद चेहरों का बासीपन 
खचाखच भीड़ में एक कब्र सा एकांत 

शहर चुप हो गया है मेरा