-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
आगाज़
मुझको एक नज़्म की तरह रखना
करो जो याद तो मरहबा कहा करना
1 टिप्पणी:
Rahul
5 फ़रवरी 2010 को 7:47 am बजे
काफी अच्छी शुरुआत है .. लगे रहो ..
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