मुझे क्या
मैं तोह रहगुज़र का हूँ
मुझे क्या
मैं तो बे उम्र सा हूँ
मुझे क्या
मैं तो ठहर जाऊं भी
ओढ़ कर एक कफ़न मर जाऊं भी
मुझे क्या, मैं तो सोता हूँ सूरज के साथ
होती है रात तो रोता हूँ सूरज के साथ
मुझे क्या मैं तो रहगुज़र का हूँ
मुझे क्या मैं तो बे उम्र सा हूँ
---------आनंद झा----२००५-----
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