सोमवार, 19 सितंबर 2011

फितूर ही तो नहीं 
खुद का मसीहा होना 

खुद के टुकड़े सी कर 
ओढ़ कर खुद को ज़र्द रातों में 
जलते दिल की चिंगारियों से रौशन 
उस बियाबान सड़क पर निकल जाना कहीं 
खुद पे इतना यकीं कर लेना 

फितूर ही तो नहीं 
मुट्ठी में जिंदगी भर लेना 

summations

हम गुज़रते रहे हैं 
इन दरख्तों के बीच 
तुम्हारी याद की पगडंडियों पर 

वक़्त कमबख्त गुज़रता ही नहीं 
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मंदिर में बंधी चुन्नियों में 
तुम्हारा नाम लेकर 
अनगिनत गिरहें बांधी मैंने 

एक गिरह आ कर खोल जाना , मैंने जिंदगी बांधी है कहीं
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अपना रसूख है 
वफ़ा personal होती है मियां 

प्यार खुद में रखो तो दर्द नहीं होता है
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न रस्ते बनाये 
न चला किसी के क़दमों पर 
यहीं खड़ा रहा नुक्कड़ के नीम तले

ज़माने आज भी चुप चाप ही फिसलते हैं
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रविवार, 18 सितंबर 2011

किसको दिखाने के लिए
ये रात टांगी है 
आसमान के दो सिरों पर 

चांदनी गिरती रहेगी 
चादर से निकले तुम्हारे तलवों पर 
बर्फ से चांदी खुरच कर 
तुम्हारे गालों पर मलती रहेगी 
चांदनी गिरती रहेगी 

लडखडाती है तुम्हारी अधखुली आँखों पर 
टिमटिमाती बाती की नींद से बेसुध छाया
डरता हूँ न जगा दे तुमको 
उडती रात का आँचल 
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रात गीली है सुबह तक सूख जाएगी 

बुधवार, 14 सितंबर 2011

Kashmir

चुप से थे 
सिहर से जाते थे
सारे चेहरे बिखर से जाते थे

कंचों का खेल था जिन्दा रहना उन दिनों 

चुप हैं 
पर अब सिहरते नहीं
चेहरे टुकड़ों में हैं 
पर बिखरते नहीं 

आदत है, जिद है  
जीते रहना मेरे  शहर में अब 

सोमवार, 5 सितंबर 2011

winter:delhi

उन दिनों
आदतें भी नयी सी लगती थी 
उन दिनों
धूप बारिश सी बरस जाती थी

खाट पर गुडगुडाते हुक्के में घुली बुज़ुर्ग उर्दू
शरबत सी ज़हन में उतरती जाती

इतर था हवा का हर मुसलसल झोंका 
तुम्हारे पैरों की आहट दीद-ए-सनम होती थी

सर्दियाँ थी दिसम्बर  की
और बावरा सा रहता था मिजाज़ मुह्हबत में तेरे 

शनिवार, 3 सितंबर 2011

Triveni

शाम तक बरसता रहा 
अब पत्तों पे जा के अटका है

एक घडी को ठहरा है ये बूंदों का काफिला 
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रात ऐंठी रही 
बैठी रही दरवाज़े पे

सुबह की ट्रेन तुम्हारी ज़रूर छूटेगी 

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अकेला हो गया है बूढा बरगद 
न पत्तियां न घोसले चिड़ियों के

लकडहारे ने तेज़ की कुल्हाड़ी अपनी 
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prem aur anya mithak

शाश्वत 
सत्य , प्रेम, मौलिकता
जीवन की सार्थकता
 शाश्वत
संभावनाएं,संवेदनाएं, मर्यादाएं 

 क्यों शाश्वत का बोझ लाद कर 
चलता तेरा क्षरता तन है 
 छोटा सा तेरा जीवन है
सब भंग सभी पल में दिखने वाले मिथक हैं 

जी चल इसके पार 
बना एक नयी परिभाषा जीवन की
खोज बस अपना धरातल 
एक व्यक्तिगत सत्य

और  डाल दे मिथकों की थैली में
 एक और वास्तविकता