खोज उसे
जो चुप बैठा है बीच तुम्हारे
जो उगता उगता गल जाता है साँझ सकारे
चल ढूंढ अठन्नी आँख की कन्नी
कूल किनारे ढूंढ
बूझ पहाडा अट्ठारह का
खोज बहारें ढूंढ
खोज उसे
कर गीली गीली पाशा
खोज मदीना ढूंढ
भरी दुपहरी सी दुनिया में
एक दिन जीना ढूंढ
आँख मिली देखा क्या तुमने
ख्वाब रहा न ख्वाब
दुनिया बनी बना ये झंझट
क्या सच क्या है ख्वाब
चलती रहे ये गाड़ी तेरी
ख्वाब कमीना ढूंढ
खोज उसे
---------आनंद झा---२००४-----
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