tag:blogger.com,1999:blog-35190577704958405102023-11-15T10:38:58.725-08:00-मुशायरा-हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झाAnand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.comBlogger208125tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-37063051962772492362022-07-19T22:51:00.001-07:002022-07-19T22:51:12.411-07:00----कुछ नहीं बदलेगा <div>वक़्त नहीं बदलेगा </div><div>लोग बदलेंगे </div><div>पर क्या बदलेंगे ?</div><div><br /></div><div>दूरियों का डर होगा </div><div>थकान की हद पे </div><div>पैसो का बिस्तर होगा </div><div>लोग तन्हा होंगे </div><div>परेशां होंगे </div><div><br /></div><div>तुम बदलोगे </div><div>मैं बदलूंगा </div><div>हम अपने रास्तों में </div><div>सफर ढूंढेंगे </div><div>हम लोगों में </div><div>अपने टूटे हुए </div><div>घर ढूंढेंगे </div><div><br /></div>Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-18845058055173695582022-07-19T22:41:00.001-07:002022-07-19T22:41:51.014-07:00----<p style="text-align: left;">खाली सीना </p><p style="text-align: left;">तेरी याद </p><p style="text-align: left;">तेरा होना जैसे ओस सा </p><p style="text-align: left;">लम्हे में शुरू </p><p style="text-align: left;">लम्हे में ख़त्म </p><p style="text-align: left;">फिर उन यादों की तहें </p><p style="text-align: left;">जिन्हें खोलना </p><p style="text-align: left;">इस्तरी करना और रख देना </p><p style="text-align: left;">अपने ज़हन के किसी हिस्से में </p><p style="text-align: left;">-----------</p><p style="text-align: left;">ये बेमतलब है </p><p style="text-align: left;">या ये तरीका है हमारे होने का </p>Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-48658741298953526062021-06-06T04:48:00.001-07:002021-06-06T04:48:38.273-07:00-<p> कितना दुखता है </p><p>ये वक़्त </p><p>कितने अकेले हैं सभी </p><p>सब डरे से हैं </p><p>कोई उनको समझता ही नहीं </p><p>वो समझ जाएं किसी को </p><p>इतना वक़्त नहीं </p><p><br /></p><p>किसी के मरने </p><p>की शर्त पर </p><p>हर रोज़ </p><p>मैं खरीदता हूँ ज़िंदगी </p><p>और खोजता फिरता हूँ </p><p>उसमें भरने के लिए रंग </p><p><br /></p><p>क्या कोई और वक़्त </p><p>कभी था </p><p>मुक्कमल सा </p><p>जिसकी शक्ल हमने </p><p>फिल्मों भी भी देखी थी </p><p>जहाँ लोग अच्छे और बुरे होते थे </p><p><br /></p><p>यहाँ तो सारे हादसों के मारे </p><p>बुझे थके हारे </p><p>लड़ते काटते कटते </p><p>लाचार लोग हैं </p><p>अपनी ही कहानी में </p><p>गिरफ्तार लोग हैं </p>Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-91360461038208630042020-08-21T13:20:00.000-07:002020-08-21T13:20:05.832-07:00aakhir<p>कतरा ले कर जाइयो </p><p>हम उसमें रक्खे बैठे हैं </p><p>जितना है अपना </p><p><br /></p><p>जाता है </p><p>तो बह जायेगा </p><p>दिल दरिया </p><p><br /></p><p>फिर खर्च ज़िंदगी कर के हम </p><p>किसी नदी किनारे बैठेंगे </p><p>जैसे भी होगा </p><p>गायेंगे </p><p>जो बचा है </p><p>जीते जाएंगे </p>Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-36845409092074433082020-06-15T13:58:00.000-07:002020-06-15T13:58:00.317-07:00neend<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
देर रात तक<br />
मेरा दिमाग<br />
एक रेलवे प्लेटफार्म की तरह बिछा होता है<br />
कुछ ख्याल चलते रहते हैं पैसिंजरों की तरह टहलते रहते हैं<br />
पूरी रात<br />
कुछ यादें ट्रेनों की तरह आती हैं<br />
नींद नहीं आती<br />
<br />
ये उम्र<br />
इतनी लम्बी थकान<br />
के कोई सो भी जाये बरसों<br />
तो ख़त्म न हो<br />
<br />
सोचता हूँ के कर लू वास्ता<br />
फूल पत्तियों से<br />
लोगों से बाज़ आऊं<br />
<br />
क्या वक़्त है<br />
जो टंगा रहता है<br />
दम घोंटता है<br />
गुज़रता भी नहीं<br />
बदलता भी नहीं </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-55374836364992171362020-05-22T06:42:00.000-07:002020-05-22T06:42:10.035-07:00April 2020<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सड़कें थीं अंतहीन<br />
नंगे पैर थे<br />
और सर पर<br />
एक पूरा घर<br />
और चिलचिलाती धूप<br />
<br />
क्यों लोग थालियां बजाते रह गए<br />
जब रेलगाड़ी कुचल गयी उसका चेहरा<br />
<br />
क्यों उसके खेतों का गेहूं<br />
सड़ गया सरकारी गोदामों में<br />
पर नहीं आया उसके काम<br />
<br />
कभी जिन इमारतों के लिए<br />
उसने ईटें ढोयीं<br />
उनके दरवाज़े नहीं खुले<br />
उसके लिए<br />
<br />
किसका था ये मुल्क<br />
जो उसका न हुआ<br />
किसके थे ये लोग<br />
जो उसके न हुए </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-21345354657375755322020-01-11T21:12:00.000-08:002020-01-11T21:12:30.128-08:00insomnia<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कई रातों के बेसिरपैर सपने<br />
दस्तावेज़ों की तरह गुथे हुए<br />
रखे हैं ऐसे<br />
जैसे मालगाड़ी का एक खाली डब्बा<br />
एक अध् गुमी रेल की पटरी पर<br />
खड़ा रहता है<br />
<br />
ऐसा इंतज़ार किसका किया है<br />
<br />
लोगों का, हालातों का, चीज़ों का, मौसमों का<br />
<br />
कौन छांटेगा ये बैरंग सपने<br />
<br />
रवाना करेगा इन्हें<br />
नींद की डाक पर </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-33033406498591752602020-01-11T21:05:00.001-08:002020-01-11T21:05:42.515-08:00arzi<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैं तुम्हारी मोहब्बतों के काबिल हूँ<br />
मुझसे इश्क़ करो<br />
बड़ा इंतज़ार किया है मैंने<br />
तुम्हारे तैयार होने का<br />
मुझे बना लो अपनी सारी दुनिआ<br />
<br />
बस मेरी बात सुनो<br />
बस मेरा ज़िक्र करो<br />
<br />
मुझे दे दो अपने ये सारे मौसम<br />
<br />
ये गुनाहे अज़ीम भी कर लो<br />
ये गुनाहे अज़ीम भी कर लो </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-54316372257560212782020-01-11T21:02:00.001-08:002020-01-11T21:02:05.552-08:00subah<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इस तरह बना लें<br />
हम अपनी सुबह<br />
टेलीफोन के तारों में पिरो कर<br />
<br />
चलें काफी दूर<br />
और देखते चलें<br />
क़दमों के तले<br />
पार्कों में बिखरे हुए<br />
यतीम लम्हों को<br />
घर ले चलें </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-24306816152037585902020-01-11T20:58:00.002-08:002020-01-11T20:58:38.299-08:00rishta<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रिश्ता दरख्वास्त है<br />
हक़ नहीं है<br />
<br />
एक पेड़ की छाँव<br />
क्या पेड़ का इरादा है<br />
या उसके वज़ूद का हिस्सा<br />
<br />
क्या पेड़ इंकार कर सकता है<br />
छाँव देने से<br />
<br />
क्या हम-तुम<br />
अलग हैं<br />
पेड़ों से<br />
<br />
क्या मुहब्बत आदमी की फितरत है<br />
या उसका इरादा </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-51615533707355335352019-12-12T23:07:00.002-08:002019-12-12T23:07:53.737-08:00kabrgahon mein titliyan bhar do<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कब्रगाहों में तितलियाँ भर दो<br />
फ़ेंक दो तमाम चिट्ठियां तूफ़ान खाती लहरों में<br />
<br />
कुछ मत सुनो कुछ मत देखो<br />
लिख लिख कर खर्च करो<br />
अपने अंदर का शोर<br />
<br />
फिर माज़ी से आती कुछ आवाज़ों पर गौर करो<br />
पहचानो वो कौन था<br />
जो तुम्हारे जैसा था<br />
<br />
और जो खोजता फिर रहा है<br />
आज तक तुम्हें </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-37092316911391730262019-12-12T22:58:00.001-08:002019-12-12T22:58:58.520-08:00-<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मेरे प्यार का पहला हासिल<br />
तुम्हारी आज़ादी है<br />
मेरी आज़ादी है<br />
<br />
मेरे प्यार का अगला हासिल<br />
सफर है<br />
मेरी आज़ादी से तुम्हारी आज़ादी के बीच<br />
<br />
मेरे प्यार का आखिरी हासिल<br />
हमारा ख़त्म होना है </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-43995821784560098742019-12-12T22:29:00.002-08:002019-12-12T22:29:36.002-08:00bastiyan jalti hain<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बस्तियां जलती हैं<br />
उनका जड़ पकड़ना<br />
उनका ख़त्म होना है<br />
<br />
उन्हें तिरते रहने दो<br />
मैन्ग्रोव के जंगलों की तरह<br />
उन्हें छिपने दो<br />
कचरे के ढेर के बीच<br />
कुकुरमुत्ते की तरह<br />
<br />
उनका अस्थ्याई होना<br />
उनके स्थायी होने की पहली शर्त है<br />
<br />
उनमें रहते लोगों की ज़िन्दगियों की तरह<br />
उनके सपनों की तरह<br />
<br />
उन प्लास्टिक के बुलबुलों की तरह<br />
जो फटने के कगार पर<br />
खड़ी रहती हैं बरसों </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-52600698481348337542019-12-12T21:59:00.000-08:002019-12-12T21:59:15.595-08:00-<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अपने दौर की मानिंद<br />
मैं भी ख़त्म हो रहा हूँ<br />
सपनों के गुब्बारे<br />
एक एक कर<br />
निकलते जा रहे हैं<br />
हाथों से<br />
गीली कहानियों की तरह<br />
<br />
क्या धोखा था<br />
किसके साथ हुआ था<br />
किसने किया था<br />
<br />
रात के साथ बढ़ता है<br />
लहरों का शोर<br />
मैं देख रहा हूँ<br />
ग़ुम होते हुए पैरों के निशान </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-39585214997193781152018-10-13T11:58:00.001-07:002018-10-13T11:58:53.988-07:00insaan<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वो<br />
हर रोज़<br />
थोड़ा घिसता रहा<br />
थोड़ा रिसता रहा<br />
<br />
इंसान<br />
बने रहने की<br />
छोटी छोटी कोशिशें<br />
करता रहा<br />
<br />
चीखता रहा<br />
फिर चुप होता रहा<br />
<br />
फिर सोचता रहा<br />
के कल क्या करना है<br />
परसों क्या करना है<br />
<br />
कुछ भी तो नहीं बदल पाया<br />
न खुद के बाहर<br />
न अंदर<br />
<br />
मुझे मिलेगा हर रोज़<br />
मेट्रो की कतारों में<br />
मानी तलाशता<br />
माज़ी से लड़ता<br />
शहर से हार कर भाग जाना चाहता<br />
डिस्काउंट लेता<br />
बीमार पड़ता<br />
कभी महान बनने के बारे में सोचता<br />
और<br />
कभी खुद के अंदर सिमट जाना चाहता<br />
इन्सान<br />
और मैं मिलूंगा उससे<br />
जैसे शीशे के सामने खड़ा<br />
अपलक देखता रहूँगा उसको<br />
और यही कहूंगा<br />
इतना ही होता है<br />
इतना ही मिलता है<br />
और ये काफी है<br />
चले चलो<br />
लड़े चलो </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-38348986352879422602018-09-12T11:26:00.000-07:002018-09-12T11:26:41.709-07:00galte logon ke beech<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कई बार गलत साबित होना ज़रूरी था<br />
हौसले का टूटना<br />
वज़ूद का टूटना<br />
ख़त्म होना ज़रूरी था<br />
<br />
कुछ नहीं<br />
बनने के लिए<br />
<br />
कुछ भी बनने के लिए<br />
कुछ नहीं बनना ज़रूरी था </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-57314710987090993112018-06-27T11:07:00.001-07:002018-06-27T11:07:29.273-07:00der raat- subah ki taiyaari mein<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तल्ख़ इमरोज़<br />
और हर दिन वही<br />
हारा मैदान<br />
थकन और नींद के बीच<br />
सुकू की मौज़ के थपेड़ों में<br />
मेरे साथ<br />
बहो जाना<br />
<br />
ये रवानगी<br />
ये दरिया बहते लम्हों का<br />
ये शोर जो डूब रहा है सूरज के साथ<br />
तुम कहाँ हो जाना के मैंने रोक रक्खी है<br />
वो एक मौज जो आ कर रुकी है साहिल पर<br />
एक उम्र की तल्खियत का नन्हा हासिल<br />
<br />
इस शाम<br />
साथ रहो<br />
नींद के आ जाने तक </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-33121106287278737752018-05-10T10:56:00.000-07:002018-05-10T10:56:26.814-07:00Varis<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दश्त का<br />
वारिस हूँ मैं<br />
मेरा काम<br />
याद रखना है<br />
उस लम्हे से जब<br />
ये तय हो चला था<br />
कि हर शहर उजाड़ होगा<br />
बसेगा एक जैसे लोगों का<br />
एक जैसा शहर<br />
----<br />
कुछ वो जुड़े<br />
जिन्हे ख़ुशी थी<br />
किसी और के घर के जलने की<br />
और कि<br />
उन्होंने नहीं किया ये घिनौना काम<br />
बस करवाया<br />
<br />
फिर उनके घर की बारी आयी<br />
-------<br />
आग से मिन्नतें नहीं करते<br />
न वजह देते हैं<br />
आग जब फैलती है<br />
तो लकीरें कहाँ देखती है<br />
ये तुमने खींची ये उसने खींची<br />
तो<br />
वो<br />
मत<br />
जलाओ<br />
जो<br />
बुझा<br />
न<br />
सको<br />
----------<br />
हद के आगे दश्त है<br />
वक़्त के आगे दश्त है<br />
हर बियाबान का माज़ी एक बस्ती थी<br />
हर बस्ती का चेहरा एक दश्त है<br />
----------------<br />
मैं याद रखूँगा<br />
ये वक़्त<br />
जब किसी ने<br />
खींची थी छत<br />
और भर दिया था झुलसता आसमान<br />
घर में मेरे<br />
--------<br />
मैं वारिस हूँ<br />
मेरा काम याद रखना है<br />
<br /></div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-61646200651672121482018-05-08T11:49:00.001-07:002018-05-08T11:49:04.190-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हम गुलशन में लाशों की फसल देख रहे हैं <div>
जो उग रही है </div>
<div>
हमारी आखों में </div>
<div>
मोतियाबिंद की तरह </div>
<div>
<br /></div>
<div>
गुज़र जायेगा ये वक़्त </div>
<div>
नफरतों की दो सुईओं पर नाचता </div>
<div>
और हम खड़े होंगे </div>
<div>
ये सोचते हुए </div>
<div>
<br /></div>
<div>
के हुआ क्या </div>
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
</div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-42059657943224240082017-09-26T12:18:00.001-07:002017-09-26T12:18:16.203-07:00muhabbat-6<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कितनी एक तरफ़ा मुहब्बतों की<br />
कब्रगाह हूँ मैं<br />
और ऐसी कितनी कब्रगाहों में हूँ मैं दफ़न<br />
<br />
काश एक शाल में लिपटे होते<br />
अपनी आरज़ूओं के हाथ थामे<br />
एक सब्ज़ दरख़्त के नीचे<br />
ओढ़ कर पश्मीने का कफ़न<br />
<br />
इश्क़ में तड़पा करो तुम सारी जनम<br />
मेरे अश्कों की प्यास लेकर अपने होठों पर<br />
मेरे आवारा मुहब्बतों में गिरफ्तार रकीब<br />
मेरी दुआ लो<br />
जाओ ऐश करो </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-51505730352652703942017-09-26T12:06:00.000-07:002017-09-26T12:06:06.223-07:00khat<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ये वो जगह है<br />
जहाँ से<br />
चुप्पी और चुप्पी<br />
के बीच<br />
बहती हुई एक नदी है<br />
<br />
आवाज़ के बाहर<br />
अलफ़ाज़ के बाहर<br />
सांस और छुअन की यातनाएं हैं<br />
देखना और देखा जाना है<br />
चलना है बगल -बगल<br />
खाना है<br />
खुशबू है<br />
और अनगिनत<br />
भाषाएं रची बसी हैं<br />
<br />
कर दो दस्तखत<br />
इस चुप्पी की वादी में<br />
निगाहों से<br />
चुप चाप<br />
सरका दो एक लिफाफा मेरी तरफ<br />
<br />
तुम वो लिख दो जो तुम लिखना चाहो<br />
मैं वो पढ़ लू जो मैं पढ़ना चाहूँ<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-55892708290592549992017-09-08T12:14:00.000-07:002017-09-08T12:14:21.129-07:00muhabbat -5<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक बेचैन सी चुप्पी के दोनों तरफ<br />
हमारी अपनी अपनी कयनातें हैं<br />
तुम्हारे पास हैं सैलाब सवालों के कई<br />
मेरे पास गए दिन की वारदातें हैं<br />
<br />
ज़ाया किये गए कई महफिलों के प्याले हैं<br />
अनपढ़ी चिट्ठियां है ख्यालों के पुलिंदों में दफ़न<br />
दिल एक टूटे light house सा जज़्बातों के समंदर पर<br />
ओढ़ कर बैठा है हज़ार सन्नाटों का कफ़न<br />
<br />
आओ शराब पिएं आहटों के साये में<br />
हर इंसान एक मुक्कमिल होता ख्वाब नहीं<br />
वो हकीकत है ज़मीन है आइना है<br />
एक बेचैन सी चुप्पी का जवाब नहीं<br />
<br />
<br /></div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-29640963485231588342017-09-04T08:50:00.001-07:002017-09-04T08:50:40.172-07:00Dilli-1<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इस शहर में अफसानों का धुआं<br />
अब भी है<br />
इमारतों के बीच फंसा आसमां<br />
अब भी है </div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-67881457960724921292017-09-01T11:33:00.003-07:002017-09-01T11:33:25.717-07:00-<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हर नयी रात का<br />
कायदा है<br />
कुछ भूल जाना<br />
<br />
फिर मिलना अगली सुबह से<br />
याददाश्त के उसी चौखट पर<br />
जहाँ न जाने की<br />
हज़ार मिन्नतें की थी<br />
<br />
ख़राब होता है वक़्त के साथ<br />
आदमी पुर्ज़ा है<br />
जंग खाता है<br />
याददाश्त की चट्टानों से रोज़ घिसकर<br />
टूट जाता है<br />
<br /></div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3519057770495840510.post-20721919402632674062017-07-13T12:01:00.002-07:002017-07-13T12:01:43.600-07:00-<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रोज़ लड़ता हूँ<br />
रोज़ थकता हूँ<br />
रोज़ अपने गुस्से से कहता हूँ<br />
बस<br />
कुछ और रोज़<br />
इसके बाद एक नयी सुबह<br />
एक मुक्कमल आज़ाद फलक<br />
और रोज़<br />
मेरा गुस्सा<br />
कहता है<br />
देख<br />
इस झूठ के बाहर<br />
का सच<br />
<br />
<br /></div>
Anand jhahttp://www.blogger.com/profile/14094397323728536551noreply@blogger.com0