रविवार, 8 अप्रैल 2012

main shayar toh nahin

पता नहीं अलफ़ाज़ कैसे जीते हैं
मैं बस कलम से घरोंदे बनाता हूँ उनके
उनसे सुनता हूँ फिर फुसफुसाता हूँ पन्नों के कानों में

मैं शायर तो नहीं 

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