वाजिब है कि तुम न पहचानो मुझे
मैं शक्ल से भीड़ जैसा दिखता हूँ
वाजिब है आवाजें न दो न बुलाओ
मैं हवाओं से अब गुफ्तगू कहाँ करता हूँ
ये भी वाजिब है छोड़ दो तनहा मुझको
मैं जिन्दगी के बहाने कहाँ ढूँढा करता हूँ
मैं सफ़र याफ्ता हूँ मुन्तजिर नहीं मंजिलों का
ये भी वाजिब है इंतज़ार न करो तुम मेरा
मगर मैं डरता हूँ दूरियों से बहुत
ये डर मुझ अकेले का तो नहीं
ये भी वाजिब है इंतज़ार न करो तुम मेरा
मगर मैं डरता हूँ दूरियों से बहुत
ये डर मुझ अकेले का तो नहीं
chhu dene waali panktiyan...
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