आये हैं अलफ़ाज़ तेरे लबों पर
दुआ जैसे रफ्ता रफ्ता क़ुबूल होती है
एक हलकी सी जुम्बिश और एक आवाज़ बिखर जाती है
अपने पलकों के कालीन पे समेट लेता हूँ उनको
मैंने अपने अश्कों में तेरे सवाल पिरो रक्खे हैं
उन्ही बंद आखों से शुरू करें
आधी बातों के पूरे अफ़साने
तुम्हे पता भी न हो शायद
मैं तुमसे कितनी बातें करता हूँ
फाख्ता हो जायेंगी ये यादें कभी
रोमांस बूढी कहानियों सा हो जायेगा
पर आवाजें जब थामा करेंगी मुझको
अपने लबों का लोबान जला कर
बुलाया करूँगा तुमको दूर पहाड़ियों से मैं
पहचान लो तो चाय पीने आ जाना
bahut pyaari lines...
जवाब देंहटाएंAwesome
जवाब देंहटाएंbahut khoob...
जवाब देंहटाएंवाह!
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