सौ आँखों से देखता हूँ तुमको
तुम डरा न करो
मैं बस देख सकता हूँ
आँखों का गुच्छा हूँ मैं
कीड़ा हूँ
मुझे रेंगता रहने दो एक कोने में
तुम मेरी दिनचर्या हो
मैं तुम्हारी दिनचर्या हूँ
दो कांटे हैं एक पुरानी दीवाल घडी के हम
दोनों हों तो वक़्त गुज़र जाता है
तुम डरा न करो
मैं बस देख सकता हूँ
आँखों का गुच्छा हूँ मैं
कीड़ा हूँ
मुझे रेंगता रहने दो एक कोने में
तुम मेरी दिनचर्या हो
मैं तुम्हारी दिनचर्या हूँ
दो कांटे हैं एक पुरानी दीवाल घडी के हम
दोनों हों तो वक़्त गुज़र जाता है
बहुत खूब , बधाई.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की १५० वीं पोस्ट पर पधारें और अब तक मेरी काव्य यात्रा पर अपनी राय दें, आभारी होऊंगा .