-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
शुक्रवार, 28 मई 2010
for mom
टुकड़ों में याद रखता हूँ चेहरा तेरा
किफ़ायत से खर्च करता हूँ वो सारे पल
इतनी ही है जो भी जमा पूँजी है
इतने बरसों जो जिए जाना है
मिलेंगे फिर कभी तो बैठकर सिखाना मुझे
कि कैसे काटी थी जिंदगी तुमने टुकड़ों में
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें