शुक्रवार, 28 मई 2010

for mom

टुकड़ों में याद रखता हूँ चेहरा तेरा
किफ़ायत से खर्च करता हूँ वो सारे पल
इतनी ही है जो भी जमा पूँजी है
इतने बरसों जो जिए जाना है

मिलेंगे फिर कभी तो बैठकर  सिखाना  मुझे
कि कैसे काटी थी जिंदगी तुमने टुकड़ों  में 

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