एक नज़र गिरफ्तार
दूर तक खेच कर लाये थे तुम
गीली नज़र पंखे के नीचे रख दी है
बाहर बारिश थमती ही नहीं
न जाने आसमा से किसकी नज़र बरसती है
गड़ती है कभी तेज़ चकाचौंध आतिशी बन कर
कभी बेबाक सी फट पड़ती है सौ फुहार लिए
कब से ये बेमौसम आशिकी
तुम्हारी आखों के कोनों से हंसती है
बहुत खूब ...सुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएं