रविवार, 23 मई 2010

Ashish bhai ko samarpit

( Ashish Mandloi was a senior activist with Narmada Bachao Andolan and had been the face of movement in Nimad and other places facing acute submergence and loss of livelihood due to the project. I had the pleasure of working with him during 2004-2007.he passed away last friday )

उठती नहीं आवाज़ कोई
डर की सिसकारी भी नहीं
रुक रुक के गिर जाती है हरसू
सांस भारी भी नहीं

एक लय सी सुबह उठ गयी
एक भैरवी सी बह चली
जब तुम चले बातें चली
सुबहें चली रातें चली
मनिबेली के कसबे चले
बडवानी की राहें चली
दिल्ली चले हर ओर से
टूटे दिलों के पोर से
उठा के कोई न फ़ेंक दे
लाठी वकील के जोर से..

तुम लड़ चले
उन हजारों बेघरों के वास्ते
तुम लड़ चले
खोले जहाँ बरसो थके थे रास्ते
तुम लड़ चले
जब हर हार से जीत का रास्ता खुला
तुम जल चले
जब भी अँधेरा रात से गहरा हुआ

संघर्ष जी कर तुम चले
संघर्ष न होगा ख़तम
आशीष मंडलोई आगे बढ़ो
लड़ेंगे हम जीतेंगे हम

2 टिप्‍पणियां: