शुक्रवार, 28 मई 2010

एक नज़र गिरफ्तार
दूर तक खेच कर लाये थे तुम
गीली नज़र पंखे के नीचे रख दी है
बाहर बारिश थमती ही नहीं
न जाने आसमा से किसकी नज़र बरसती है

गड़ती है कभी तेज़ चकाचौंध आतिशी बन कर
कभी बेबाक सी फट पड़ती है सौ फुहार लिए 

कब से ये बेमौसम आशिकी
तुम्हारी आखों के कोनों से हंसती है

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