रविवार, 18 सितंबर 2011

किसको दिखाने के लिए
ये रात टांगी है 
आसमान के दो सिरों पर 

चांदनी गिरती रहेगी 
चादर से निकले तुम्हारे तलवों पर 
बर्फ से चांदी खुरच कर 
तुम्हारे गालों पर मलती रहेगी 
चांदनी गिरती रहेगी 

लडखडाती है तुम्हारी अधखुली आँखों पर 
टिमटिमाती बाती की नींद से बेसुध छाया
डरता हूँ न जगा दे तुमको 
उडती रात का आँचल 
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रात गीली है सुबह तक सूख जाएगी 

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