हम गुज़रते रहे हैं
इन दरख्तों के बीच
तुम्हारी याद की पगडंडियों पर
वक़्त कमबख्त गुज़रता ही नहीं
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मंदिर में बंधी चुन्नियों में
तुम्हारा नाम लेकर
अनगिनत गिरहें बांधी मैंने
एक गिरह आ कर खोल जाना , मैंने जिंदगी बांधी है कहीं
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अपना रसूख है
वफ़ा personal होती है मियां
प्यार खुद में रखो तो दर्द नहीं होता है
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न रस्ते बनाये
न चला किसी के क़दमों पर
यहीं खड़ा रहा नुक्कड़ के नीम तले
ज़माने आज भी चुप चाप ही फिसलते हैं
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Lovely.....:) Loved it!
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