उन दिनों
आदतें भी नयी सी लगती थी
उन दिनों
धूप बारिश सी बरस जाती थी
खाट पर गुडगुडाते हुक्के में घुली बुज़ुर्ग उर्दू
शरबत सी ज़हन में उतरती जाती
इतर था हवा का हर मुसलसल झोंका
तुम्हारे पैरों की आहट दीद-ए-सनम होती थी
सर्दियाँ थी दिसम्बर की
और बावरा सा रहता था मिजाज़ मुह्हबत में तेरे
Bahut umdha...:)
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