सोमवार, 5 सितंबर 2011

winter:delhi

उन दिनों
आदतें भी नयी सी लगती थी 
उन दिनों
धूप बारिश सी बरस जाती थी

खाट पर गुडगुडाते हुक्के में घुली बुज़ुर्ग उर्दू
शरबत सी ज़हन में उतरती जाती

इतर था हवा का हर मुसलसल झोंका 
तुम्हारे पैरों की आहट दीद-ए-सनम होती थी

सर्दियाँ थी दिसम्बर  की
और बावरा सा रहता था मिजाज़ मुह्हबत में तेरे 

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