सोमवार, 1 अगस्त 2011

धूप में सूखते हुए सन्नाटे 
सुफैद चेहरों का बासीपन 
खचाखच भीड़ में एक कब्र सा एकांत 

शहर चुप हो गया है मेरा 



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