शनिवार, 30 जुलाई 2011

कहूँ कुछ भी 
अलिफ़ तुम ही होते हो
तुमसे जुदा बातें नहीं होती मेरी 

न आते भी ज़िक्र तुम्हारा चला आता है 

मुहब्बत हो या नफरत 
मिजाज़ बदमस्त रहता है 

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