-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
सोमवार, 1 अगस्त 2011
धूप में सूखते हुए सन्नाटे
सुफैद चेहरों का बासीपन
खचाखच भीड़ में एक कब्र सा एकांत
शहर चुप हो गया है मेरा
1 टिप्पणी:
SAJAN.AAWARA
2 अगस्त 2011 को 1:20 am बजे
behtreen sher bhai jaan
jai hind jai bharat
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