-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
शुक्रवार, 26 अगस्त 2011
conversations
सुन सको अगर
दबी चीखों में
एक बीते हुए दिन की भैरवी
सुन सको अगर
हर एक जुम्बिश वक़्त की
उन सभी चेहरों पर
बिना बंद किये कान
अगर बर्दाश्त कर सको
तन्हाई का सैलाब सा शोर
तो मिलेंगे शाम को
एक प्याली चाय पर
1 टिप्पणी:
S.N SHUKLA
27 अगस्त 2011 को 5:35 am बजे
बहुत सुन्दर और खूबसूरत प्रस्तुति .
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बहुत सुन्दर और खूबसूरत प्रस्तुति .
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