खिड़की से दिखती है
दुनिया खिड़की जैसी
खुलती है तो फ़ैल जाता कमरे में धूप का रंग
तुमपर बरस रही है धूप की पहली बारिश
चढ़ रहा है न उतरने वाला सुर्ख ताम्बई रंग
खिड़कियाँ तुम्हारी ज़बान , तुम्हारी आखें
कि जब भी खोलो तो बह चले
नूर ऐ बयार
और हर एक शेह जो सुस्त , मनिन्दा सी थी अब तक
नाच उठे एक चम्पई दुपहरी में
न करो बंद के मुरझा जायेंगे
मन के कोपल
के खिडकियों से ही सही आसमान तो दिखता है
देखे खुदा तुम तक
तुममें खुदी का अक्स आये
खोल दो खिड़कियाँ सारी
के धूप घर आये
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