सोमवार, 31 जनवरी 2011

itivrit-2

न सोचेंगे
चुप्पियों के ढेर में छुपाये गए
मुट्ठी भर  मातम के बारे में
न सुनेंगे और न सुनायेंगे
जो देखा था
हमने खिडकियों से
जब हम छोटे थे

बाथरूम में खुद को कैद कर
भूलने की साजिश करेंगे
और फिर बेवजह रातों में चौंक कर उठ जायेंगे

कहीं जाना नहीं है इन लम्हों को
बस दीवार से टकरा कर कैद रहना है
तुम्हारे अन्दर 

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